kayasth chitragupta

कायस्था चित्रगुप्त पूजा विधि -( kayastha chitragupta puja vidhi)

kayastha chitragupta puja kaise karen

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त की पूजा करने का भी विधान है। कहा जाता है कि चित्रगुप्त की पूजा करने से व्यापार में उन्नति का वरदान मिलता है। कायस्थ समाज में चित्रगुप्त को एक आराध्य देवता के रूप में पूजा जाता है। इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।

चित्रगुप्त पूजा की विधि :

  • पूजा से पहले साधक भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति की सफाई करते हैं और फिर उसे गुलाब जल से स्नान कराते हैं.
  • फिर देवता के सामने घी का दीया जलाएं और फिर दही, दूध, शहद, चीनी और घी का उपयोग करके पंचमित्र तैयार करें
  • उसके बाद प्रसाद के रूप में मिठाई और फल का भोग लगाएं
  • पूजा विधि में सिंदूर, अबीर, हल्दी और चंदन के पेस्ट के मिश्रण से जमीन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाना बेहद जरूरी है
  • स्वास्तिक पर चावल रखें और उसके ऊपर आधा पानी भरा कलश रख लें
  • अब गुड़ और अदरक को मिलाकर गुराड़ी बना लें
  • फिर चित्रगुप्त कथा का पाठ करें, कथा के बाद आरती करें, फिर मूर्ति पर फूल और चावल छिड़के.
हाथ में फूल तथा चावल लेकर चित्रगुप्त जी का ध्यान करें 

चित्रगुप्त! नमस्तुभ्यं लेखकालेखकाक्षरदायकम्।
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोस्तुते॥
येषां त्वया लेखनस्य जीविका जीविकायेन निर्मिता ।
तेषां च पालको यस्मात्तत: यस्मात्तत: शान्ति प्रयच्छ मे॥

कर्मों का मान्यता और सजगता: चित्रगुप्त पूजा हमें कर्मों के महत्व को समझाती है और धार्मिक और नैतिक कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करती है। यह हमें यह याद दिलाती है कि हमारे कर्मों का सटीक खाता रखना जीवन में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।

आत्म-समर्पण: चित्रगुप्त पूजा भक्तों को अपने कर्मों का समर्पण करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह हमें यह सिखाती है कि हमें अपने कर्मों को एक उच्च उद्देश्य के लिए करना चाहिए।

नैतिकता और धर्म के पालन का माध्यम: चित्रगुप्त पूजा हमारे धर्मिक और नैतिक मूल्यों के पालन की प्रेरणा प्रदान करती है। यह हमें धर्मिक दिशा में चलने के लिए मार्गदर्शन करती है और हमें अपने कर्मों के द्वारा धर्म का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

आत्म-समीक्षा और सजगता: चित्रगुप्त पूजा हमें अपने कर्मों के परिणामों का समीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह हमें अपने आत्मिक विकास के मार्ग पर बने रहने की महत्वपूर्ण आवश्यकता को समझाती है।

चित्रगुप्त पूजा का इतिहास पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इसके अनुसार, चित्रगुप्त महाराज स्वर्ग के महालेखापालक हैं, जो हर व्यक्ति के कर्मों का खाता रखते हैं और उनके कर्मों के आधार पर उनके आत्मिक पुनर्जन्म के भविष्य को तय करते हैं। यह पूजा चित्रगुप्त महाराज की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति आदर और समर्पण का प्रतीक है।

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